भारतीय राजीति और मीडिया ने पिछले कुछ वर्षों में एक एक ऐसा शब्द खोज निकाला है जिसने कई चीज़ों के मायने ही बदल डाले हैं. धर्म की आड़ में की जाने वाली राजनीती को प्रोत्साहन देने के लिए एक बहुत सुंदर शब्द “सेक्युलर” इस्तेमाल किया जाने लगा है. यहाँ अपने देश में हर राजनीतिज्ञ सेकुलरिज्म की टोपी पहन के घूम रहा है और दर्शकों को भी पहना रहा है !
वर्तमान में “सेक्यूलर” शब्द का अर्थ अब धर्म निर्पेक्ष होना नहीं रहा, बल्कि एक खास धर्म की ओर ध्यान देना मात्र है. इस शब्द को मीडिया और कुछ चुनिन्दा राजनीतिज्ञों ने इतना एकतरफा और घृणित बना डाला है की सेक्युलर शब्द सुनते ही आम भारतीय के मन में मुस्लिम सम्प्रदाय से सम्बन्धित कुछ होने का अभ्यास होने लगता है. हमारे कुछ नेताओं और राजनीतिज्ञों के किसी थाकथित “सेक्यूलर” नेता द्वारा दीपावली/होली या लोहड़ी/बैसाखी या क्रिसमस/ईस्टर आदि की दावत नहीं दी जाती, लेकिन इफ़्तार पार्टी देने की सभी में होड़ लगी हुई होती है, इस देश में सब राजनीतिक चालबाज़, अपने आप को सबसे बड़ा “सेक्युलर” यानि मुस्लिम हितेषी सिद्ध करने में लगे पड़े हैं.
कांग्रेस शासन में जब देश में मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे तो बड़ी बड़ी इफ्तार पार्टियां चलन में आये, हिन्दू , सिख, बौद्ध विफर गए….की क्या कभी दुर्गा पूजा पर पार्टी दी थी? दीपावली पर? कभी गुरु नानक जन्म दिवस पर दी? सारे के सारे हिन्दू, सिख ईसाई, बौद्ध त्यौहार निकलते गए, परन्तु किसी को भारतीय जनता के टैक्स से दी जनि वाली इफ्तार पार्टी का मुद्दा समझ नहीं आया ! कुल मिला के सेकुलरिज्म की पार्टी, पूर्व कांग्रेस की सरकार देश की जनता के टैक्सपेयर्स से चुकाती थी !
सेकुलरिज्म के नाम पे देश में केवल मुस्लिम राजनीती चल रही है, मीडिया के कुछ समूह भी इस नकली सेकुलरिज्म के हवा बनाने में दिन रत लगे रहते हैं. सेकुलरिज्म की आड़ में देशद्रोह और कुछ बुरे कामो में लिप्त लोगों को भी विक्टिम बना के पेश किया जाता है जैसे की देश में इनके साथ बहुत अन्याय हो रहा है और सेकुलरिज्म से इसका हल खोज जाना चाहिए, सेकुलरिज्म मतलब मुस्लिम परस्ती. यदि सरकारें आदि धर्मनिर्पेक्ष है तो उनको धर्मनिर्पेक्ष वास्तविक मायनों में रहना चाहिए। सरकारी खर्चे पर कोई धर्म संबन्धित कार्य नहीं होने चाहिए, चाहे पूजा-हवन आदि हो या दावत हो या फिर आरक्षण अथवा छात्रवृत्ति (scholarship) हो। सरकार सभी की होती है, किसी धर्म विशेष की नहीं, तो किसी धर्म विशेष पर अधिक ध्यान देना उचित नहीं।
Author: Viral Bharat
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