मुस्लिम महलियाओं के अधिकारों के लिए इलाहबाद हाई कोर्ट ने ऐतहासिक फैसला सुनाया है जिससे मुस्लिम महिलाओं में ख़ुशी की लहर है. अदालत ने ट्रिपल तलाक को अवैध करार करते हुए कहा की कोई कोई पर्सनल लॉ बोर्ड और व्यक्तिगत मान्यता संविधान से ऊपर नहीं है !ट्रिपल तलाक महिलाओं के अधिकारों का हनन करता है. “कुरान में तीन तलाक को अच्छा नहीं माना गया है। उसमें कहा गया है कि जब सुलह के सभी रास्ते बंद हो जाएं तभी तलाक दिया जा सकता है। लेकिन धर्म गुरुओं ने इसकी गलत व्याख्या की है।”
– साथ ही देशभर में अलग-अलग कोर्ट में मुस्लिम महिलाओं और संगठनों ने पिटीशन दायर करके तीन तलाक को चुनौती दी थी – ऐसी ही कुछ मिलतीजुलती पिटीशन पर सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई हो रही है।
मुस्लिम पर्सनल बोर्ड ने कहा था- सुप्रीम कोर्ट को बदलाव का हक नहीं – इससे पहले तीन तलाक को लेकर दायर पिटीशंस पर सुप्रीम कोर्ट भी मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से सवाल कर चुकी है।
– इस पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने हलफनामा दायर करते हुए कहा था कि ये पिटीशंस खारिज की जानी चाहिए।
– मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का दावा है कि तीन तलाक एक ‘पर्सनल लॉ’ है और नियमों के मुताबिक सरकार या सुप्रीम कोर्ट इसमें बदलाव नहीं कर सकती।
केंद्र सरकार भी जता चुकी विरोध
– मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के जवाब के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा था।
– 7 अक्टूबर को केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा था, “तीन तलाक, निकाह हलाला और एक से ज्यादा शादी जैसी प्रथाएं इस्लाम की अनिवार्य धार्मिक प्रथा नहीं हैं।”
– यह पहला मौका था जब केंद्र सरकार ने तीन तलाक का विरोध किया था।
– इसके बाद लॉ कमीशन ने यूनिफॉर्म सिविल कोड पर लोगों से 16 सवालों के जवाब मांगे हैं। इनमें एक से ज्यादा शादी, तीन तलाक जैसी परंपराएं खत्म करने जैसे मुद्दे शामिल हैं।
– कमीशन ने और धर्मों पर भी सवाल पूछे हैं। हिंदुओं के ‘मैत्री करार’ और महिलाओं के संपत्ति के अधिकार पर भी लोगों से सुझाव मांगे गए हैं।
Author: Viral Bharat
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