May 6, 2024 1:30 am

जमकर लिखते हैं तभी खास दिखते हैं, 84 साल के हुए देश को अंत्योदय योजना देने वाले शांता कुमार

भाजपा के दिग्गज नेता और कांगड़ा संसदीय क्षेत्र के सांसद शांता कुमार ने अपने जीवन के 84 साल पूरे कर लिए हैं. हिमाचल समेत देश की राजनीति में सक्रिय नेता का आज अपना 85वां जन्मदिन मना रहे हैं. एक साधारण परिवार में जन्मे शांता का नाम आज देश के दिग्गज नेताओं में शुमार हैं.

कांगड़ा जिला के छोटे से गांव गढ़ जुमला के एक साधारण परिवार में जन्मे शांता कुमार प्रदेश के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने और प्रदेश में भाजपा पार्टी को एक मजबूत आधार प्रदान किया. गांव के ग्राम पंचायत के पंच से अपना राजनीतिक करियर शुरू करने वाले शांता कुमार भाजपा के कद्दावर नेताओं में शामिल है. कांगड़ा चंबा से सांसद और पूर्व में केंद्रीय मंत्री रहे शांता कुमार को अन्न का मंत्री भी कहा जाता है. शांता कुमार ने केंद्रीय खाद्य आपूर्ति मंत्री रहते हुए देश के लिए अंत्योदय योजना का शुभारंभ किया था जो गरीब परिवार के लिए एक बड़ा सहारा बनी.

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गढ़ जमुला में 12 सितंबर 1934 को पैदा हुए शांता कुमार ने यहीं से अपना पहला प्रधान का चुनाव लड़ा और उसमें जीत हासिल की. इसके बाद उन्होंने भवारना पंचायत समिति और फिर 1965 से 1970 तक जिला परिषद अध्यक्ष के रूप में कार्य किया. शांता कुमार ने उस समय की जनसंख्या पार्टी यानी जनता पार्टी के साथ मिलकर प्रदेश में उसको खड़ा किया और 1972 में पहली बार चुनाव लड़कर विधानसभा पहुंचे.

इसके बाद शुरू हुए राजनीतिक करियर में 1977 में शांता कुमार हिमाचल के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने. उनका यह कार्यकाल 1980 तक रहा. 1990 में उन्होंने फिर सरकार का नेतृत्व किया जो 2 साल तक चला.1986 से 1990 तक में भाजपा पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के पद पर भी रहे. इसके बाद1999 से 2000 तक केंद्र की भाजपा सरकार में सार्वजनिक वितरण मंत्री समेत अन्य पदों पर मौजूद रहे. भाजपा में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष समेत अन्य पदों पर रहने के साथ-साथ वर्तमान समय में कांगड़ा चंबा लोकसभा सीट से सांसद है.

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शांता कुमार को भले ही प्रदेशवासी पानी वाले मुख्यमंत्री के तौर पर अधिक जानते हैं, लेकिन उनके भीतर का रचनाकार भी कम लोकप्रिय नहीं है. इन सभी चेहरों में शांता कुमार का लेखन व्यक्तित्व अलग से चमकता है. शांता कुमार राजनीति में ईमान और जनहित में मजबूत फैसले लेने वाले राजनेता के तौर पर विख्यात हैं. नो वर्क, नो पे का कंसेप्ट उन्हीं का था, जिसे बीबीसी ने भी सराहा था. आपातकाल में जेल में रहते हुए शांता कुमार ने बहुत लेखन किया. उनके उपन्यासों में हिंद पॉकेट बुक्स से ‘लाजो’ व ‘कैदी’ राजपाल एंड संस से ‘मृगतृष्णा’, भारतीय प्रकाशन संस्थान से ‘मन के मीत’ और किताबघर प्रकाशन से वृंदा शामिल हैं. इसके अलावा तुम्हारे प्यार की पाती और ओ प्रवासी मीत मेरे नामक कविता संग्रह भी प्रकाशित हुए हैं. प्रभात प्रकाशन से उनके वैचारिक लेखों की पुस्तक ‘भ्रष्टाचार का कड़वा सच’ आई है.

शांता कुमार विभिन्न समाचारपत्रों में संपादकीय पृष्ठों पर भी वैचारिक लेखन करते रहे हैं. शांता कुमार की रचनाओं में सामाजिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय चिंताएं मिलती हैं. उनका कहना है कि वर्तमान दौर में राजनीति में मूल्यों की बेहद जरूरत है. शब्द साधना के जरिए ही मूल्यों की राजनीति संभव है. शांता के अनुसार यदि पठन-पाठन और लेखन की रुचि गहरी हो तो राजनीति की व्यस्तता में भी सहज ही समय निकल आता है. विख्यात आलोचक श्रीनिवास श्रीकांत का कहना है कि राजनेताओं की लिखी पुस्तकों को उनके राजनीतिक व्यक्तित्व के कारण भी कई दफा अधिमान मिलता है, लेकिन घपलों-घोटालों के इस दौर में राजनेताओं का लेखन कर्म से जुड़ाव दुर्लभ तो माना ही जाएगा.

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Author: Viral Bharat

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