हिमाचल में विवाद सुलगाने के लिए धारा-118 का शोर ही काफी है. इस धारा का जिक्र भर हुआ और जयराम सरकार बदनाम हो गई. सोशल मीडिया पर भी लोगों ने नई-नवेली सरकार को कोसना शुरू कर दिया. अधिकांश लोग इस तथ्य से अनजान थे कि ये सब किया-धरा तो पूर्व वीरभद्र सिंह सरकार का था और मुफ्त में बदनामी जयराम सरकार के सिर पर आ गई.खैर अब सीएम जयराम ठाकुर ने मामले में हस्तक्षेप किया है और अब नोटिफिकेशन वापस ले लिया गया है.
दरअसल, सारे विवाद की नींव एक चिट्ठी से पड़ी. कांगड़ा जिला के डीसी ने राजस्व विभाग से एक मसले पर क्लैरिफिकेशन मांगी. राजस्व विभाग की तरफ से क्लैरिफिकेशन जारी कर दी गई. राजस्व विभाग के संयुक्त सचिव की तरफ से जारी इस क्लैरिफिकेशन में विस्तार से मामले की पृष्ठभूमि का जिक्र नहीं किया गया. बस, यहीं से सारा विवाद शुरू हो गया.
सोशल मीडिया में शोर मच गया कि जयराम सरकार धारा-118 में संशोधन कर हिमाचली हितों को बेचने जा रही है, जबकि तथ्य ये है कि वर्ष 2014 में वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के समय ये सब हो चुका था. यहां गौर रहे कि धारा-118 में संशोधन विधानसभा के जरिए ही संभव है. ऐसे में जब विधानसभा में मामला ही नहीं आया तो धारा-118 में संशोधन का सवाल ही पैदा नहीं होता, लेकिन सोशल मीडिया पर यूं ही शोर मच गया.
हिमाचल प्रदेश में प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने वर्ष 2011 में एक संशोधन किया और फैसला लिया कि बोनाफाइड हिमाचली (जो हिमाचल में निवास की तय अवधि पूरी कर चुके हैं) यहां फ्लैट या फिर बना-बनाया मकान खरीद सकते हैं. ऐसे बोनाफाइड जमीन नहीं खरीद सकते थे. बाद में वीरभद्र सिंह सरकार ने वर्ष 2014 में संशोधन किया और बोनाफाइड शब्द को सरकारी कर्मचारियों के तौर पर बदल दिया. ऐसे में ये पूरा किस्सा कांग्रेस सरकार के समय शुरू हुआ.
अब जयराम सरकार सत्ता में आई तो डीसी कांगड़ा ने इस विषय पर राजस्व विभाग से कुछ बिंदुओं पर क्लैरिफिकेशन चाही और राजस्व विभाग की तरफ से सभी को मार्गदर्शन के तहत सर्कुलर जारी किया. अब हुआ यूं कि जैसे ही मामला पब्लिक डोमेन में आया तो शोर मच गया. सभी ने तथ्यों की पड़ताल किए बिना ये कहना शुरू कर दिया कि धारा-118 में संशोधन किया जा रहा है.
असल में जयराम सरकार ने पुराने कांग्रेस सरकार के समय के ही बदलाव को लेकर डीसी कांगड़ा सहित सभी को क्लैरिफिकेशन पर मार्गदर्शन से संबंधित सर्कुलर जारी किया था. जयराम सरकार ने महज इतना किया कि कांग्रेस सरकार के समय जो अफसरों व कर्मियों के लिए आवास बनाने को लेकर जमीन खरीद के नियम बने थे, उसे बच्चों तक एक्सटेंड किया. यानी ऐसे कर्मियों अफसरों के बच्चे भी आवास बनाने के लिए जमीन खरीद का आवेदन कर सकते हैं.
वैसे भी परमिशन तो पूरे परिवार में सिर्फ एक ही मिलनी थी और वो भी आवेदन के बाद सरकार ने तय करना था. लेकिन विभिन्न पक्षों के बीच सामंजस्य न होने से संदेश गलत चला गया. यानी जयराम सरकार का सिर्फ ये कहना कि गैर हिमाचली सरकारी अफसरों व कर्मियों के बच्चे भी आवेदन कर सकेंगे, शोर मचा गया.
चूंकि गैर हिमाचली अफसर व कर्मी जमीन खरीदने के लिए पहले से ही पात्र हैं, लिहाजा बच्चे भी पात्र हो सकेंगे. लेकिन ये ध्यान रखना जरूरी है कि परमिशन तो परिवार में एक ही को मिलनी थी. ये पहले भी था और अब भी यही होना था, लेकिन जयराम सरकार मुफ्त में ही बदनाम हो गई.
Author: Viral Bharat
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