हिमाचल/शिमला:
हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय में मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्ति के मामले में सुनवाई हुई. यह सुनवाई न्यायमूर्ति विवेक ठाकुर और न्यायमूर्ति बिपिन चंद्र नेगी की डबल बेंच ने की. इस मामले में बुधवार को लगातार तीन घंटे तक सुनवाई हुई. इस मामले में सोमवार और मंगलवार को भी लगातार दो दिन सुनवाई हुई थी. मामले में अगली सुनवाई अब 8 और 9 मई को होगी. हिमाचल प्रदेश सरकार में एडवोकेट जनरल अनूप कुमार रत्न ने अदालत आग्रह किया था कि सरकार को अपना पक्ष रखने के लिए थोड़ा वक्त दिया जाए. राज्य सरकार इसमें बड़े संविधान विशेषज्ञों को शामिल करना चाहती है. एडवोकेट जनरल के इस आग्रह के बाद अदालत ने मामले में अगली तारीख दी है.
हिमाचल प्रदेश सरकार के एडवोकेट जनरल अनूप रत्न ने कहा कि राज्य सरकार इस पूरे मामले में दो बड़े संविधान विशेषज्ञों को जोड़ना चाहती है. यह दोनों संविधान विशेषज्ञ अदालत को इस पूरे मामले में असिस्ट करेंगे. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार का मत है कि मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्ति कानून के तहत हुई है. भारतीय जनता पार्टी के विधायक सतपाल सिंह सत्ती खुद तत्कालीन धूमल सरकार में मुख्य संसदीय सचिव के पद पर रह चुके हैं. ऐसे में अब वह इसी कानून को चुनौती दे रहे हैं. एडवोकेट जनरल ने यह भी कहा कि इस पूरे मामले में मुख्य संसदीय सचिवों की बतौर विधायक सदस्यता नहीं जा सकती, क्योंकि पहले ही एक पुराने मामले में चुनाव आयोग स्पष्टता दे चुका है.
गौरतलब है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 164 में किए गए संशोधन के मुताबिक किसी भी प्रदेश में मंत्रियों की संख्या विधायकों की कुल संख्या का 15 फीसदी से अधिक नहीं हो सकती। यानी प्रदेश में अधिकतम 12 मंत्री लगाए जा सकते हैं। याचिकाकर्ताओं के अनुसार, प्रदेश में मंत्री और मुख्य संसदीय सचिवों की संख्या में 15 फीसदी से ज्यादा हो गई है इसलिए सीपीएस की नियुक्तियों को भाजपा के 12 विधायकों ने हाई कोर्ट में चुनौती दी है।