April 28, 2024 6:29 am

फ़र्ज़ी पत्रकार मामला : एक ईमानदार पत्रकार की ज़ुबानी एक ओछी पत्रकारिता को दर्शाती व्यथा

पत्रकारों को खुद उठना होगा पत्रकारिता के नाम पर दुकान चलाने वालों के खिलाफ.एक लैटर वायरल हुआ है, जिसमें एक दवा निर्माता कम्पनी के मैनेजर ने एक पत्रकार और एक ड्रग कंट्रोलर पर उसे धमकाने, उसकी कंपनी सीज करवाने की धमकी देने और उसके खिलाफ गलत खबर लिखकर उसे बदनाम करने को लेकर। एक पत्रकार होने के नाते मुझे बहुत बुरा लगा, हमेशा लगता है जब कोई राह चलता टुटपुंजिया टाइप का आदमी भी यह कहता है कि अच्छा पत्रकार हो.. भाई बुरा मत मानना दलाल ही होते हैं ज्यादातर। दांतों को होंठों से भींच कर रख लो क्योंकि हम क्या कर सकते हैं उसका, उसको लगा तभी तो कहा। जी नहीं हम कर सकते हैं कुछ उसका, किसका? जिनकी वजह से हर कोई हमें दलाल कह दें।

मीडिया सस्थानों को मीडिया कर्मी को ऐसे लोगों के खिलाफ सिर्फ आवाज ही नहीं उठानी चाहिए बल्कि एक अभियान छेड़ना चाहिए, उसका बहिष्कार करना चाहिए, सामाजिक अवेहलना करनी चाहिए, पब्लिकली एक्सपोज करना चाहिए, क्योंकि ऐसे चंद लोग हमारे पूरे पवित्र पेशे को बदनाम करते हैं, हमारी पूरी बिरादरी को बदनाम करते हैं, अकेला चना भाड़ भले ना फोड़े लेकिन अकेली मछली सारा तालाब जरूर गंदा कर देती है, और बाकि मछलियां भी सड़ी समझी जाने लगती हैं। अब समय आ गया है कि मीडिया के नाम पर दुकान चलाने वालों के विरुद्ध निर्णायक लड़ाई लड़ी जाए। इसके लिए सरकारों को भी चाहिए कि वह कुछ कदम उठाएं।

सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि अभी तक फ्रॉड और रंगदारी और बेवजह परेशान करने के मामले में प्रशासन द्वारा कोई कार्रवाई भी नहीं की गई। यह अपने आप में भी बड़ा सवाल है। इसके अलावा हर राज्य चाहता है उसके यहां निवेश आए बाहर से कम्पनियां आए और अपनी उत्पादन और सेवा यूनिट की स्थापना करें। प्रधानमंत्री निवेश में रेडटेपिज्म के विरुद्ध है, सीएम स्वयं देश-विदेश जाकर निवेश के लिए न्यौता देकर आते हैं, लेकिन यहां कुछ दुकानदार पत्रकार अधिकारियों के साथ मिलकर ऐसे निवेशकों को प्रताड़ित करते हैं और शिकायतों के बाद भी निरंकुश अधिकारी कोई कार्रवाई नहीं करते। यह हर हाल में बाहर से आने वाले निवेशकों को हतोत्साहित करेगा। जो न प्रदेश के हित में है और नहीं इसका अच्छा संदेश बाहर जाता है, इसलिए ऐसे लोगों पर भी कठोर कार्रवाई होनी चाहिए।

अब ऊपर लिखे केस को बानगी के तौर पर लेते हैं, एक व्यक्ति जो सचिवालय से सेवानिवृत्त हैं, अन्दर बाहर की जानकारी है उनके पास, आखिर क्यों ना हो? वहीं जो रहे रोज फाइलों के बीच रहे तो सब पता है। सेवानिवृत्त होते ही एक डोमेन रजिस्टर करवाया, नाम रख दिया नेशन न्यूज, जोकि एक बड़े न्यूज चैनल से मिलता जुलता है। माइक आईडी का कलर भी लाल है, जो उसके माइक आईडी से भी मिलता जुलता है। यह किसी भी तरह से सही नही है।

इसके साथ शुरू होता है ब्लैकमेलिंग का काम खबर के नाम पर गिने चुने प्रेसनोट छापना और प्रोपागंडा करना। सत्तासीन लोगों की छवि बनाना बिगाड़ना, अपने चहेते नेताओं की चाटुकारी करना उनकी पीपी (इसे पत्रकारिता में चाटुकारी कहा जाता है, या इससे भी बुरा)।

यही हाल है, इन पत्रकार महोदय का। वह हर हाल में यह संदेश देना चाहते हैं कि सरकार में कुछ भी ठीक नहीं है। सत्ता में टकराव है, इस पर फिर से विपक्षी बहस करेंगे सरकार के मन में फूट है, ऐसा सन्देश जनता तक डालने की कोशिश करेंगे। ये यह साबित करने की कोशिश करेंगे कि सत्ता के कई केंद्र बन रहे हैं। सीएम ऑफिस कमजोर है, यह साजिश है सीएम ऑफिस को कमजोर करने की। इसका असर गवर्नेंस पर पड़ता है, जब सत्ता कमजोर दिखती है तो बाकि लॉबी मजबूत होती है, माफिया नेक्सस सक्रिय होता है और प्रेशर ग्रुप की तरह वह सीएम ऑफिस पर दबाव बनाने की कोशिश की जा सके।

इस पूरे प्रकरण में प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकारों की राय पूरी तरह जुदा है, उन्हें कहीं भी कोई गुटबाजी नजर नहीं आती है. उन्हें सीएम मजबूत स्पष्ट काम करने वाले नजर आते हैं, उनके मुताबिक सीएम जनता के लिए काम कर रहे हैं, कोई भी माफिया लॉबी सीएम ऑफिस के आस पास भी नहीं फटक पा रही है, तो ऐसे में अंतर कलह गुटबाजी और सीएम ऑफिस को कमजोर करने वाली मंशा के पीछे का मूल कारण क्या है? यह अपने आप में स्पष्ट है, ऐसे पत्रकारों का माफिया कनेक्शन जो सीएम ऑफिस को कमजोर कर अपना उल्लू सीधा करने की कोशिश में हैं।

सरकार के हर कार्यक्रम में आगे आगे रहेंगे और फिर उसकी पक्षपातपूर्ण समीक्षा करेंगे। इन सारे कामों के एक चीज जो गायब होगी वह होगी जर्नलिस्टिक एथिक्स, वह क्यों पालन करेंगे उन्हें क्या पता होगा? क्या है पत्रकारिता का मूल्य क्या है पत्रकारिता का दायित्व, क्या है इसका सरोकार? ये सबसे दूर रहते हैं सिर्फ अपने दुकानदारी के पास रहते हैं, और यही वह लोग हैं, जिनकी वजह से लोग इस पूरी जमात को सन्देश के नजरिए से देखते हैं।

अब सवाल यह उठता है कि ऐसे लोगों को हर जगह एक्सेस कैसे मिल जाता है। ऐसे लोगों पर किसी तरह का कोई चेक और बैलेंस क्यों नहीं है। सरकारी संस्थाएं नहीं तो पत्रकारिता में सुचिता को सुनिश्चित करने वाली संस्थाएं इनके काम की देख रेख क्यों नहीं करती है। इससे भी बड़ा सवाल यह है कि ऐसी पत्रकारिता जिसे की पत्रकारिता के अलावा और कुछ भी कह सकते हैं उन्हें सरकार द्वारा वित्त पोषण कैसे हो रहा है, उन्हें सरकारी तंत्र द्वारा विज्ञापन कैसे मिल रहा है? यह सब होना इस बात का द्योतक है कि कोई तो है जो जानबूझकर सीएम ऑफिस को कमजोर करने की कोशिश कर रहा है। ऐसे लोगों से सरकार को सख्ती से निपटना चाहिए।

इसके अलावा सबसे अहम् है अब खुद को पत्रकारिता बिरादरी खुद इस प्रकरण को संज्ञान में लें। प्रेस क्लब से लेकर प्रेस को सूचितापूर्ण चलाने वाली और निगरानी करने वाली संस्थाएं भी आगे आएं और पत्रकारिता के नाम पर दुकानदारी चलाने वालों पर कठोर कदम उठाए, जिससे यह पवित्र पेशा दुकानदारों की जद से दूर रहे और अपने वास्तविक लक्ष्यों को प्राप्त कर सके.

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Author: Viral Bharat

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